क्यों, देखते नहीं कि वृक्षों के नीचे तोतों के रहने के कोटरों के मुँह से नीचे गिरे हुए धान पड़े हैं। कहीं इंगुदी फलों को तोड़ने से चिकने हुए पत्थर बिखरे पड़े हैं। यहाँ के हरिण मनुष्यों के पास रहने के अभ्यस्त हैं, इसी से रथ के शब्द को सुनकर भी वे बिना चौंके पहले की ही भाँति निःशंक फिर रहे हैं। पानी लेकर आने के मार्ग पर वल्कल वस्त्रों के छोरों से चूने वाले जल-बिन्दुओं की रेखा बनी दिखाई पड़ रही है। छोटी-छोटी नालियों में पानी की धारा बह रही है, जिससे वृक्षों की जड़ें धुल गई हैं। घी के धुएँ के कारण तरुओं के नवपल्लवों का रंग बहुत बदल गया है। उस ओर उपवन की भूमि से दर्श के अंकुर निकालकर साफ कर दिए गए हैं।
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