जब दुष्यन्त तपोवन से विदा लेकर अपनी राजधानी में लौट आए और उन्होंने शकुन्तला की कोई खबर नहीं ली, तो उस प्रसंग में विरह-व्यथा को प्रकट करने के लिए बहुत कुछ लिखा जा सकता था या शकुन्तला के मुख से कहलवाया जा सकता था परन्तु कालिदास ने इसके लिए कुछ भी उद्योग नहीं किया। केवल दुर्वासा के आगमन और शकुन्तला के दुष्यन्त के ध्यान में मग्न होने के कारण उनकी अवहेलना द्वारा ही शकुन्तला की करुणाजनक मनोदशा की झाँकी दे दी।