Prateek Singh

5%
Flag icon
राजा धनुष पर बाण चढ़ाए हरिण के पीछे दौड़े जा रहे हैं, तभी कुछ तपस्वी आकर रोकते हैं। कहते हैं : “महाराज, यह आश्रम का हरिण है, इस पर तीर न चलाना।’ यहाँ हरिण से हरिण के अतिरिक्त शकुन्तला की ओर भी संकेत है, जो हरिण के समान ही भोली-भाली और असहाय है। ‘कहाँ तो हरिणों का अत्यन्त चंचल जीवन और कहाँ तुम्हारे वज्र के समान कठोर बाण!’ इससे भी शकुन्तला की असहायता और सरलता तथा राजा की निष्ठुरता का मर्मस्पर्शी संकेत किया गया
Abhigyan Shakuntal
Rate this book
Clear rating