Prateek Singh

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आलोचना करते हुए लिखा है, “शाकुन्तल का आरम्भ सौन्दर्य से हुआ है और उस सौन्दर्य की परिणति मंगल में जाकर हुई है। इस प्रकार कवि ने मर्त्य को अमृत से सम्बद्ध कर दिया है।’
Abhigyan Shakuntal
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