भद्रे, मैं तो देखता हूँ कि ये वृक्षों को सींचने से पहले ही बहुत अधिक थक गई हैं; क्योंकि घड़े उठाने से इनकी बाँहें कन्धों पर से ढीली होकर झूल रही हैं और हथेलियाँ बहुत लाल हो गई हैं। मुँह पर पसीने की बूँदें झलक आई हैं, जिनसे कान में लटकाया हुआ शिरीष का फूल गालों पर चिपक गया है; और जूड़ा खुल जाने के कारण एक हाथ से संभाले हुए बाल इधर-उधर बिखर गए हैं। लीजिए, मैं इनका ऋण उतारे देता हूँ। (यह कहकर अंगूठी देना चाहता है।)