Prateek Singh

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यदि आश्रम में रहने वाले लोगों का ऐसा रूप है, जो रनिवासों में भी दुर्लभ है, तो समझ लो कि वनलताओं ने उद्यान की लताओं को मात दे दी। कुछ देर इस छाया में खड़े होकर इनकी प्रतीक्षा करता हूँ। (देखता हुआ खड़ा रहता है।)
Abhigyan Shakuntal
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