Prateek Singh

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सचमुच ही मैं चिन्तित हो उठा हूँ। ये दोनों कार्य अलग-अलग स्थान के हैं; इसी से मेरा मन दुविधा में पड़ गया है, जैसे सामने पर्वत आ जाने पर विशाल नदी का प्रवाह दो भागों में बँट जाता है। (कुछ देर विचार कर) मित्र, तुम्हें भी तो माताजी पुत्र के समान ही मानती हैं। इसलिए तुम यहाँ से लौटकर नगर चले जाओ। वहाँ जाकर माताजी से निवेदन कर देना कि मैं तपस्वियों के कार्य में फँसा हुआ हूँ और मेरी ओर से तुम्हीं पुत्र के सब कार्य पूरे कर देना।
Abhigyan Shakuntal
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