Prateek Singh

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हृदय, अब तुम अभिलाषा कर सकते हो। अब सन्देह का निर्णय हो गया है। जिसे तुम आग समझकर डर रहे थे, वह तो रत्न निकला जिसे सरलता से स्पर्श किया जा सकता है।
Abhigyan Shakuntal
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