मुझे अब नगर जाने की उत्सुकता नहीं रही। फिर भी चलकर अपने अनुचरों को तपोवन से कुछ दूर टिका दूँ। इस शकुन्तला के काण्ड से मैं किसी प्रकार अपने-आपको वापस नहीं लौटा पा रहा। मेरा शरीर यद्यपि आगे की ओर जा रहा है, जैसे वायु के प्रवाह के विरुद्ध जाने वाले झण्डे का रेशमी वस्त्र पीछे की ओर ही लौटता है!