Prateek Singh

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क्योंकि अब उन हरिणों की ओर बाण साधकर मुझसे यह धनुष झुकाया नहीं जाता, जिन्होंने प्रियतमा शकुन्तला के पास रहकर उसे भोली चितवनों से देखना सिखलाया है।
Abhigyan Shakuntal
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