Prateek Singh

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शब्दों का प्रसंगोचित चयन, अभीष्ट भाव के उपयुक्त छन्द का चुनाव और व्यंजना-शक्ति का प्रयोग करके कालिदास शकुन्तला के सौन्दर्य-वर्णन पर उतरे हैं, वहाँ उन्होंने केवल उपमाओं और उत्प्रेक्षाओं द्वारा शकुन्तला का रूप चित्रण करके ही सन्तोष नहीं कर लिया है। पहले-पहल तो उन्होंने केवल इतना कहलवाया कि ‘यदि तपोवन के निवासियों में इतना रूप है, तो समझो कि वन-लताओं ने उद्यान की लताओं को मात कर दिया।’
Abhigyan Shakuntal
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