भ्रमर, तुम कभी उसकी बार-बार कांपती चंचल चितवन वाली दृष्टि का स्पर्श करते हो। और कभी उसके कान के पास फिरते हुए धीरे-धीरे कुछ रहस्यालाप-सा करते हुए गुनगुनाते हो। उसके हाथ झटकने पर भी तुम उसके सरस अधरों का पान करते हो। वस्तुतः तुम्हीं भाग्यवान् हो, हम तो वास्तविकता की खोज में ही मारे गए।