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“स्त्रियाँ शरमाती हैं, इसलिए फूल उनपर हँसते हैं!’
प्रत्येक लोकप्रिय कहावत केवल अर्धसत्य ही होती है।’’
जिस तरह के व्यवहार की आशा मैं इस दुनिया से करता हूँ , उसी तरह का व्यवहार उसके साथ करने की श्रद्धा का ही नाम धर्मबुद्धि है।
सच तो यही है कि इस संसार में हर कोई केवल अपने लिए ही जिया करता है। मनुष्य सुख के लिए अपने निकट के लोगों का सहारा ठीक उसी तरह खोजते हैं जैसे वृक्षलताओं की जड़ें पास की आर्द्रता की ओर मुड़ जाती हैं। इसी झुकाव को दुनिया कभी प्रेम कहती है कभी प्रीति, तो कभी मैत्री। लेकिन वास्तव में वह होता है आत्मप्रेम ही।
शायद वासना के केवल जीभ ही होती है! भगवान ने उसे कान, आँखें, मन, हृदय कुछ नहीं दिया है। उसे अन्य किसी बात की पहचान होती ही नहीं है। वह पहचानती है केवल अपने सन्तोष को!