पता नहीं अगर कभी कोई हिसाब लगाता कि समाज ने कितने घरों को जोड़ा और कितनों को तोड़ा है तो शायद ही समाज दुनिया की किसी भी कॉलोनी में मुँह दिखाने लायक बचता। कॉलोनियाँ इतनी बड़ी होकर भी किसी यश्वी, किसी कावेरी को इतनी जगह नहीं दे पातीं, जहाँ वो बिना किसी सवाल के साथ रह पाएँ।