सारी चीज़े एक प्रज्ञावान तत्व से बनी हैं। यह तत्व इसकी मूल अवस्था में ब्रह्मष्ठं की सभी ख़ाली जगहों में उपस्थित है और उन्हें भरता है। इस तत्व पर छोड़ी गई विचार की छाप उस चीज़ को पैदा कर देती है, जिसकी छवि विचार में मौजूद होती है। विचार के माध्यम से हर कोई चिज़ों को आकार दे सकता है और उस विचार की छाप निराकार तत्व पर छोड़कर उस चीज़ का सृजन करवा सकता है।

