अर्दली ने अदालत को आकर बताया कि बड़ौदा-गुजरात में हुए दंगों के मुर्दे दस्तक दे रहे हैं...उनमें एक अधमरा घायल भी है जो कभी भी मर सकता है ! –तो पहले उसे मरने दो। मेरे पास जिन्दा या अधमरों के लिए वक्त नहीं है ! मुझे मुर्दों से निपटना है...अदालत ने अर्दली को झाड़ दिया। अर्दली तमतमा उठा–अगर आप जिन्दा या अधमरों की बात नहीं सुनेंगे तो मरनेवालों की तादाद बढ़ती जाएगी...खून बटोरने से काम नहीं चलेगा...खून का खुला हुआ नल बंद कीजिए ! यह लगातार बह रहा है ! –चोप्प ! अदालत चीखी। –मैं चुप नहीं रहूँगा।अर्दली को सियासत चुप करा सकती है या पुलिस...लेकिन आप लेखक होकर चुप करा रहे हैं मुझे ?...लानत हैं आप पर...अर्दली
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