लेकिन जनता के लीडरों की जो नई जमात आई है, वह अपने सार्वजनिक उद्रेक में जो कुछ कह जाती है, उन स्थापनाओं से पीछे नहीं हट सकती...यही मोहम्मद अली जिन्ना की विडम्बना और त्रासदी है ! उन्होंने एक बार सार्वजनिक तौर पर इंडिया का विभाजन माँग लिया तो फिर उनका मन चाहे जितना पछताता रहे, पर वे उस माँग से पीछे नहीं हट सकते हटेंगे तो वे अपना नेतृत्व खो देंगे !...किसी नेता को यह गवारा नहीं होता। जनता की भावनाओं को भड़का कर पैदा किए गए आंदोलनों की यही ताक़त और कमज़ोरी है...एक बार जो कह दिया गया, वह बाद में चाहे अनुचित और ग़लत लगने लगे, पर उसे बदला नहीं जा सकता...अगर बदला गया तो रूढ़ और घटिया ताकतें परिवर्तित
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