बाज़ारों के लिए ही बनते हैं साम्राज्य ! और साम्राज्यों को जीवित रखने के लिए ही बनाए जाते हैं बाज़ार ! साम्राज्यों की नाभि बाज़ार से जुड़ी है। साम्राज्यों के रूप बदल सकते हैं...वे प्रजातांत्रिक आर्थिक साम्राज्य का रूप ले सकते हैं परन्तु, इन पूँजीवादी प्रजातन्त्रों को जीने के लिए मुनाफ़े के बाजारों की ज़रूरत है...बाज़ार ! बाज़ार !! बाज़ार !!! यही है औद्योगिक क्रान्ति का सतत् जीवित रहने की मजबूरी भरा सिद्धान्त ! यही है पूँजीवाद। इसी का दूसरा नाम है साम्राज्यवाद। तीसरा नाम है उपनिवेशवाद। और आज दस्तक देती हुई नई सदी में इसका नाम है बाज़ारवाद। यह व्यवस्था कच्चे माल की प्राप्ति और नित नए बाज़ारों के
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