–इसी तरह की बहसों से धार्मिक, सामुदायिक और ऐतिहासिक असलियत की दिशाएँ बदल जाती हैं और कालान्तर में वे अलगाव, बहिष्कार और द्वेष का कारण बन जाती हैं...पराजित पक्ष इस तरह की स्मृतियों को संचित करके एक दूसरा ही मनोवांछित इतिहास लिख लेता है और उसी में जीना शुरू कर देता है ! अदीब ने कहा तो सब उसकी ओर सहमति या असहमति से देखने लगे–और विजेता जब इन संचित स्मृतियों के इतिहास का सामना करता है तो धर्म उसका सहायक हथियार बन जाता है। तब वह धर्म को अपने शस्त्रागार में शामिल करके निरंकुश होने की हद तक चला जाता है...आरंभिक मध्यकालीन आक्रमणों का विकसित होता और बदलता सच यही है...