Rajeev Awasthi

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आज पूरे चाँद की रात थी...सलमा का तमतमाया चेहरा उस चाँदनी में टीन की चादर की तरह चमक रहा था। नईम साहब न जाने कहाँ गायब हो गए थे...त्र्योबिश में सन्नाटा था। पता नहीं बाकी लोग कहाँ छुप गए थे। झिलमिलाती पन्नी वाले पानी पर कुछ बोट्स थाप देते हुए थरथरा रही थीं...दूर काली जेटी की जाली पर चाँदी की बर्फियाँ बिछी थीं। लावे की कत्थई चट्टानें सुस्तातें हिरनों की तरह बैठी थीं और पानी के भीतर छोटी-छोटी मछलियों के झुंड मोतियों की चादरों की तरह आते और पलट कर चले जाते थे।
कितने पाकिस्तान
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