ख़ामोश विलाप की आवाजें तभी दिल पर दस्तक देती हैं जब इंसानी उसूलों की हत्या होती है और आँसुओं की नदी तभी उमड़ती है जब कोई संस्कृति सूखने वाली होती है–तब आदमी की लाचारी के आँसू उसकी आँखों से बहते नहीं दिखाई देते, बल्कि वे ज़मीन में जज़्ब होकर उस दिशा में बह निकलते हैं जहाँ कोई नई संस्कृति जन्म ले रही होती है। हुजूरे आलिया ! आदमी के आँसू ही नई संस्कृतियों को पैदा करके उसे सींचते हैं...जिस संस्कृति के आँसू सूख जाते हैं, वह उजड़ जाती है...