Rajeev Awasthi

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अदीबे आलिया ! किसी को देके दिल कोई नवासंजे फ़ुगां क्यों हो न हो जब दिल ही सीने में, तो फिर मुँह में ज़ुबाँ क्यों हो ! किया ग़मख़्वार ने रुसवा, लगे आग इस मुहब्बत को न लाए ताब जो ग़म की, वो मेरा राज़दां क्यों हो ! वफ़ा कैसी, कहाँ का इश्क, जब सर फोड़ना ठहरा तो फिर ऐ संगेदिल ! तिरा ही संगे आस्तां क्यों हो ! —खु़दा हाफ़िज़...
कितने पाकिस्तान
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