पटना से...क्यों...मेरे फोन की तो उम्मीद भी नहीं होगी आपको... –एक हल्की-सी उम्मीद तो हर दिन थी, पर वह उम्मीद ही क्या, जो पूरी हो जाए ! –मतलब ? –यही कि उम्मीद जड़ों की तरह फैलती है...फोन न आता तो फोन आने की उम्मीद रहती, फोन आ गया है तो दूसरी उम्मीदें साँस ले रही हैं !