लक्ष्यहीन पथिक ?"-बीजगुप्त की विचारधारा बदल गई।-क्या कोई भी व्यक्ति लक्ष्यहीन है-अथवा लक्ष्यहीन होना व्यक्ति के लिए कभी सम्भव है ? शायद हाँ-बीजगुप्त असमंजस में पड़ गया। एक दूसरा भी है ? कोई भी व्यक्ति बता सकता है कि वह क्या करने आया है, क्या करना चाहता है और क्या करेगा ? नहीं, यही तो नहीं सम्भव है। मनुष्य परतन्त्र है। परिस्थितियों का दास है, लक्ष्यहीन है। एक अज्ञात शक्ति प्रत्येक व्यक्ति को चलाती है। मनुष्य की इच्छा का कोई मूल्य ही नहीं है। मनुष्य स्वावलम्बी नहीं है, वह कर्ता भी नहीं है, साधन-मात्र है !”

