दिन के बाद रात, और रात के बाद दिन। सुख के बाद दुख, और दुख के बाद सुख। बिना रात के दिन का कोई महत्त्व नहीं है, और बिना दिन के रात्रि का कोई महत्त्व नहीं। बिना दुख के सुख का कोई मूल्य नहीं है, और बिना सुख के दुख का कोई मूल्य नहीं। यही परिवर्तन का नियम है। संसार परिवर्तनशील है। मनुष्य उसी संसार का एक भाग है।

