शान्ति अकर्मण्यता का दूसरा नाम है, और अकर्मण्यता ही मुक्ति है। जिसे सारा विश्व अकर्मण्यता कहता है, वह वास्तव में अकर्मण्यता नहीं है, क्योंकि उस स्थिति में मस्तिष्क कार्य किया करता है। अकर्मण्यता के अर्थ होते हैं-जिस शून्य से उत्पन्न हुए हैं, उसी में लय हो जाना। और वही शून्य जीवन का निर्धारित लक्ष्य है। और अभी तुमने सुख की परिभाषा की बात कही थी, उसे भी में ठीक मानता हूँ ! पर सुख एक ही है, उसमें भेद नहीं होता। वह सुख क्या है, जब मनुष्य यही जान गया, तब वह साधारण परिस्थिति से कहीं ऊपर उठ जाता है।”—

