Avanindra Kumar

7%
Flag icon
“बाह्य दृष्टि से परिवर्तन और आन्तरिक दृष्टि से शून्य। शून्य और परिवर्तन-इनके विचित्र संयोग पर तुम्हें शायद आश्चर्य होगा-ये दोनों एक किस प्रकार से हो सकते हैं, यह प्रश्न स्वाभाविक होगा। पर वही स्थिति, जहाँ मनुष्य परिवर्तन और शून्य के भेदभाव से ऊपर उठ जाता है, झान की अन्तिम सीढ़ी है। संसार क्या है? शून्य है। और परिवर्तन उस शून्य की चाल है। परिवर्तन कल्पना है, और कल्पना ही स्वयं शून्य है । समझे ?” मधुपाल इस उत्तर से सन्तुष्ट न हो सका—“देव, आपने कहा कि संसार शून्य है। यह मेरी समझ में नहीं आया। जो वस्तु दृष्टि के सामने है वह शून्य किस प्रकार हो सकती है ?” कुमारगिरि हँस पड़े—“यहीं तो योग की आवश्यकता ...more
चित्रलेखा
Rate this book
Clear rating