Avanindra Kumar

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“ये पुष्प कोमल हैं ? ठीक है; पर इनमें कॉटे भी तो हैं। न जाने कितने छोटे-छोटे भुनगे इन फूलों के अन्दर घुसे हुए हैं। रही इनकी कोमलता तथा इनकी सुगन्ध, ये क्षणिक हैं। फिर इनकी सुगंध किस काम की ? एकान्त में ये अपना सौरभ व्यर्थ गॅवा देते हैं। और इस कलरवगायन में माधुर्य हो सकता है। केवल स्वरों का। यह कलरव-गायन, इसमें संयत भाषा न होने के कारण, उस भावहीन संगीत की भाँति है, जिसमें स्वरों का उतार-चढ़ाव नहीं है। इस संगीत में सप्त स्वर एक साथ गूंज उठते हैं। इस कलरव-गायन से कहीं अच्छा मानव कठ का संगीत होता है। और कोयल में केवल पंचम है, जिसको अधिक देर तक सुनने से चित्त ऊब उठता है। कोयल क्या कहती है, यह कोई ...more
चित्रलेखा
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