क्या त्याग और वेदना से जीवन नष्ट होता है ? क्या दुख जीवन का एक भाग नहीं ? क्या प्रत्येक व्यक्ति अपने भाग्य में सुख ही लेकर आता है ? नहीं। दुख इतना ही महत्त्व का है, जितना सुख। तो फिर दुख ही झेला जाए-तो फिर त्याग का ही मार्ग अपनाया जाए। मुझे अपना कर्तव्य करना चाहिए-मेरा कर्तव्य क्या है ?’

