Avanindra Kumar

16%
Flag icon
तुम्हारे उस शून्य पर विश्वास ही कौन करता है ? जो कुछ सामने है, यही सत्य है और नित्य है। शून्य कल्पना की वस्तु है। शून्य की महत्ता की दुहाई देनेवाले योगी ! क्या तुम अपने और मेरे ममत्व में भेद देखते हो ? यदि हाँ, तो तुम शून्य पर विश्वास नहीं करते, और यदि नहीं, तो तुम्हारा ज्ञान और अन्धकार, सुख और दुख, स्त्री और पुरुष, तथा पाप और पुण्य का भेदभाव मिथ्या है। मनुष्य को जन्म देते हुए ईश्वर ने उसका कार्यक्षेत्र निर्धारित कर दिया। उसने मनुष्य को ! इसलिए जन्म दिया है कि वह संसार में आकर कर्म करे, कायर की भाँति संसार की बाधाओं से मुख न मोड़ ले। और सुख ! सुख तृप्ति का दूसरा नाम है। तृप्ति वहीं सम्भव है, ...more
चित्रलेखा
Rate this book
Clear rating