साथ ही प्रत्येक व्यक्ति में कमजोरियाँ होती हैं, मनुष्य पूर्ण नहीं है। उन कमजोरियों के लिए उस व्यक्ति को बुरा कहना और शत्रु बनाना उचित नहीं; क्योंकि इस प्रकार एक मनुष्य किसी व्यक्ति का मित्र नहीं हो सकता। संसार के प्रत्येक व्यक्ति को वह बुरा कहेगा, और प्रत्येक व्यक्ति उसका शत्रु हो जाएगा। फलतः उसका जीवन भार हो जाएगा। मनुष्य का कर्तव्य है, दूसरे की कमजोरियों पर सहानुभूति प्रकट करना।”

