वासना पाप है, जीवन को कलुषित बनाने का एकमात्र साधन है। वासनाओं से प्रेरित होकर मनुष्य ईश्वरीय नियमों का उल्लंघन करता है, और उनमें डूबकर मनुष्य अपने को अपने रचयिता ब्रह्म को भूल जाता है। इसीलिए वासना त्याज्य है। यदि मनुष्य अपनी इच्छाओं को छोड़ सके, तो वह बहुत ऊपर उठ सकता है। ईश्वर के तीन गुण हैं-सत्, चित् और आनन्द ! तीनों ही गुण वासना से रहित विशुद्ध मन को मिल सकते हैं, पर वासना के होते हुए ममत्व प्रधान रहता है, और ममत्व के भ्रान्तिकारक आवरण के रहते हुए इनमें से किसी एक का पाना असम्भव है। विशालदेव

