“सुना है लोग उसे आँख भर के देखते हैं सो उसके शहर में कुछ दिन ठहर के देखते हैं सुना है रब्त है उसको खराब हालों से सो अपने आप को बर्बाद कर के देखते हैं सुना है बोले तो बातों से फूल झड़ते हैं ये बात है तो चलो बात कर के देखते हैं सुना है दिन को उसे तितलियाँ सताती हैं सुना है रात को जुगनू ठहर के देखते हैं सुना है रात से बढ़कर हैं काकुलें उसकी सुना है शाम को साये गुजर के देखते हैं सुना है उसके लबों से गुलाब जलते हैं सो हम बहार पर इल्जाम धर के देखते हैं सुना है उसके बदन के तराश ऐसी है कि फूल अपनी कबाएँ कतर के देखते हैं।”

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