बनारस टॉकीज [Banaras Talkies]
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Kindle Notes & Highlights
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“कृपया बुद्धिजीवी कहकर अपमान न करें। यहाँ बी.डी.जीवी रहते हैं।”
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कॉमन रूम में पहुँचने पर वैसा ही अनुभव हुआ, जैसा माँ अपने कलेजे को कॉलेज भेजने से पहले का बताती है। जैसा दलदल में फँसी हिरण का घड़ियाल को देखकर होता है। जैसा निहत्थे का लठैत देखकर होता है।
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क्रिमिनल लॉयर और क्रिमिनल में फर्क बस डिग्री का ही होता है।”
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गई माँगने पूत को, खो आई भतार।”
21%
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बुड़बक के यारी और भादो में उजियारी!
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“खुरपी के बियाह में, सूप का गीत मत गाइए!
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आन्हर गुरु बहिर चेला, माँगे गुड़ तो दे दे ढेला!”
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सब बारात में बाई जी नहीं होती हैं, कहीं-कहीं ऑर्केस्ट्रा भी चलता है।”
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डायन को भी अपना दामाद प्यारा होता है
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अस्सी घाट। दक्षिण से उत्तर की ओर जाते हुए पहला घाट। वरुणा और अस्सी नदियों के संगम का घाट। संतों का घाट। चंटों का घाट। कवियों का घाट। छवियों का घाट। गँजेड़ियों का घाट। भँगेड़ियों का घाट। मेरा घाट। दादा का घाट। हमारा घाट।
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“सुना है लोग उसे आँख भर के देखते हैं सो उसके शहर में कुछ दिन ठहर के देखते हैं सुना है रब्त है उसको खराब हालों से सो अपने आप को बर्बाद कर के देखते हैं सुना है बोले तो बातों से फूल झड़ते हैं ये बात है तो चलो बात कर के देखते हैं सुना है दिन को उसे तितलियाँ सताती हैं सुना है रात को जुगनू ठहर के देखते हैं सुना है रात से बढ़कर हैं काकुलें उसकी सुना है शाम को साये गुजर के देखते हैं सुना है उसके लबों से गुलाब जलते हैं सो हम बहार पर इल्जाम धर के देखते हैं सुना है उसके बदन के तराश ऐसी है कि फूल अपनी कबाएँ कतर के देखते हैं।”
41%
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“आपको देखकर देखता रह गया। क्या कहूँ और कहने को क्या रह गया।”
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बबुआ गए मुगल देश में, बोले मुगली बानी। आब-आब कर बबुआ मर गए, खाट तले था पानी।”
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“मतलब, काजी बेकरार है और दुल्हन फरार है?”
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जैसे- पहले BA वैसे अब MBA की तर्ज पर ही। जैसे- पहले Typewriter वैसे अब computer.
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बाप के घी बाप के लकड़ी, स्वाहा!”
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पूछी ना आछी, हम दुल्हा के चाची।
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पड़ी भैंस बबवा के पाले, ले दौड़ावे ताले-ताले।”
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“मतलब हाथी-हाथी हल्ला और हुआ कुक्कुर का पिल्ला!
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खाए के माड़ ना, नहाए के तड़के!
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“बात बिगाड़े तीन; अगर मगर लेकिन।
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भले संग रहोगे, खाओगे बीड़ा पान; बुरे संग रहोगे फूटेगा मुँह कान।”
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बीमार बछिया बाभन को दान!
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अक्सर जिस सिक्के को हम खोटा समझते हैं, वो अपने दिनों की अशर्फियाँ होती हैं।
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दुधार गाय के लात सहाय!”
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बाप की खटिया टूटी, बेटा पिए फ्रूटी।
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बनारस। मोक्षस्थली। मृत्यु यहाँ निर्वाण की प्राप्ति है और जीवन फाकामस्ती। आतंक से आतंकित जीवन होता है, मृत्यु नहीं। बनारस भूतों, अवधूतों, औघड़ों का डेरा। इन्हें आप क्या डराएँगे? हँसता है बनारस और प्रार्थना करता है, उनके लिए भी जो मरे और उनके लिए भी जिन्होंने मारा।
89%
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बनारस सबकुछ भूल कर फिर से मस्त हो गया; घंटियों के शोर में, गंगा-जमनी तहजीब की डोर में, भाँग के हिलोर में और अपने घाटों से छनकर आती हुई नई भोर में।