निठल्ले की डायरी
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Read between December 12 - December 21, 2019
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जब घंटों भगवान की स्तुति करना काम माना जाता है, तब मुँह चिढ़ाना काम क्यों
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भ्रष्टाचारी अगर जल्दी मर जाए, तो परिवार को बड़ी सुविधा होती है
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रेल में दस-बारह घंटे लड़की का साथ रहे, तो दस साल का काम पूरा होता है । एक दिन का सफर एक जिन्दगी के बराबर होता है । जिन्दगी में रोज-रोज पड़नेवाले सारे काम सफर में होते हैं और उम्मीदवार अपनी पूरी योग्यता जता सकता है ।"
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बुजुर्ग का खास 'प्रिवलेज' (विशेष हक) है कि किसी भी औरत को घूर सकता है और कोई बुरा नहीं मानता । सफेदी की आड़ में हम बूढ़े वह सब कर सकते हैं, जिसे करने की तुम जवानों की भी हिम्मत नहीं होती ।"
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मरते किसी और कारण से हैं, मगर सोचते हैं कि प्रेम में मर रहे हैं ।
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उसने कहा, "तुम यहाँ नहीं सो सकते । यहाँ वही सो सकते हैं, जिन्हें यहाँ से तनख्वाह मिलती है । ऐसा नियम है । यह नियम पूरे देश में लागू है कि जिसे जहाँ से तनख्वाह मिलती है, वह वहाँ सो सकता है । ये विधायक लोग भी तभी सो सकते हैं, जब विधान-सभा चल रही हो । रात को ये यहाँ सोना चाहें, तो इन्हें भी नहीं सोने दिया
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दूसरा विरोधी, 'कुत्ता बाईं तरफ से चले, ऐसा नियम सरकार ने कभी नहीं बनाया । इसलिए वह कहीं भी चलने को स्वतन्त्र है । इसलिए उसके लिए सड़क की दोनों बाजू सही हैं । इस दुर्घटना में कुत्ते का कोई कसूर नहीं है।' इसी समय पीछे से एक सदस्य ने उठकर कहा, "अध्यक्ष महोदय ! मैं आपका ध्यान इस बात की ओर आकर्षित करना चाहता हूँ कि कुछ गाँवों में ओले गिरने से सारी फसल चौपट हो गई है। उन गाँवों के किसान बरबाद हो गए हैं । वे भूखे मर रहे हैं और उनके मवेशी भी मर रहे हैं । हजारों किसान विधान-सभा के फाटक पर अपनी फरियाद लेकर हाजिर हैं । उनके विषय में सदन में विचार होना चाहिए ।' बाहर किसान नारे लगा रहे थे, पर अभी कुत्ते की ...more
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स्वामीजी ने कुछ देर विचार किया । फिर कुटिया में गए और एक जड़ी हाथ में लेकर आए । बोले, "लो, यह जड़ी ले जाओ । इसकी विधिपूर्वक पूजा करके इसे जमीन में गाड़ देना । दिन-रात सात दिन तक इसके पास रामधुन लगाना । आठवें दिन इसे निकालकर लोबान की धूनी देना । बस, समाज का हृदय-परिवर्तन हो
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जनता की आँखों पर पट्टी बँधी है, मगर अफसरों ने अपनी पट्टी खिसका ली है और वे खुली आँखों से खीर खा रहे हैं । जनता कुछ नहीं कहती, बल्कि ताली बजाती है । जो मेहनत करता है, और उत्पादन करता है, उसके हाथ में बन्दर का खिलौना दे दिया गया है, जिससे उसका मन बहलता रहे । जो खीर खाता है उसे स्टेनलेस स्टील के बर्तन मिलते हैं, जिनमें और खीर खाई जा सकती है ।
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मैंने कहा, "उन्हें वध के लिए कौन बेचते हैं? वे आपके सधर्मी गोभक्त ही हैं न ?" स्वामीजी ने कहा, "सो तो हैं । पर वे क्या करें? एक तो गाय व्यर्थ खाती है, दूसरे बेचने से पैसे मिल जाते हैं ।"
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मैंने कहा, "यानी पैसे के लिए माता का जो वध करा दे, वही सच्चा गो-पूजक हुआ" स्वामीजी मेरी तरफ देखने लगे । बोले, "तर्क तो अच्छा कर लेते हो, बच्चा । पर यह तर्क की नहीं, भावना की बात है । इस समय जो हजारों गोभक्त आन्दोलन कर रहे हैं, उनमें शायद ही कोई गौ पालता हो । पर आन्दोलन कर रहे हैं । यह भावना की बात है ।"
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स्वामीजी से बातचीत का रास्ता खुल चुका था । उनसे जमकर बातें हुई, जिसमें तत्त्व का मन्थन हुआ । जो तत्त्व-प्रेमी...
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हमें भी राजनीति का मजा आता है
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"पर स्वामीजी, यह कैसी पूजा है कि गाय हड्डी का ढाँचा लिये हुए मुहल्ले में कागज और कपड़े खाती फिरती है और जगह-जगह पिटती है!" "बच्चा, यह कोई अचरज की बात नहीं है । हमारे यहाँ जिसकी पूजा की जाती है उसकी दुर्दशा कर डालते हैं । यही सच्ची पूजा है । नारी को भी हमने पूज्य माना और उसकी जैसी दुर्दशा की, सो तुम जानते ही हो ?"
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"बच्चा, इसमें तुक है । देखो, जनता जब आर्थिक न्याय की माँग करती है, तब उसे किसी दूसरी चीज में उलझा देना चाहिए, नहीं तो वह खतरनाक हो जाती है । जनता कहती है— हमारी माँग है —महँगाई बन्द हो, मुनाफाखोरी बन्द हो, वेतन बढ़े, शोषण बन्द हो; तब हम उससे कहते हैं कि नहीं, तुम्हारी बुनियादी माँग गो-रक्षा है । बच्चा,