Rahul Nechlani

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जब वो कम-उम्र ही था उसने यह जान लिया था कि अगर जीना है बड़ी चालाकी से जीना होगा आँख की आख़िरी हद तक है बिसाते-हस्ती3 और वह मामूली-सा इक मुहरा है एक इक ख़ाना बहुत सोच के चलना होगा
Tarkash (Hindi)
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