Sanchit Kalra

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धीरे-धीरे आगे बढ़ता ग़म का ये लावा अज़ीयत2 है मगर फिर भी ग़नीमत3 है इसी से रूह में गर्मी बदन में ये हरारत4 है ये ग़म मेरी ज़रूरत है मैं अपने ग़म से ज़िंदा हूँ
Tarkash (Hindi)
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