Sanchit Kalra

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मैं बेचारा इक बंजारा आवारा फिरते-फिरते जब थक जाऊँगा तनहाई के टीले पर जाकर बैठूँगा फिर जैसे पहचान के मुझको इक बंजारा जान के मुझको वक़्त के अगले शहर के सारे नन्हे-मुन्ने भोले लम्हे नंगे पाँव दौड़े-दौड़े भागे-भागे आ जाएँगे मुझको घेर के बैठेंगे और मुझ से कहेंगे क्यों बंजारे तुम तो वक़्त के कितने शहरों से गुज़रे हो
Tarkash (Hindi)
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