Sanchit Kalra

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मैं अकसर सोचता हूँ ज़हन2 की तारीक3 गलियों में दहकता और पिघलता धीरे-धीरे आगे बढ़ता ग़म का ये लावा अगर चाहूँ तो रुक सकता है मेरे दिल की कच्ची खाल पर रक्खा ये अंगारा अगर चाहूँ
Tarkash (Hindi)
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