Sanchit Kalra

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बंजारा मैं बंजारा वक़्त के कितने शहरों से गुज़रा हूँ लेकिन वक़्त के इस इक शहर से जाते-जाते मुड़के देख रहा हूँ सोच रहा हूँ तुमसे मेरा ये नाता भी टूट रहा है तुमने मुझको छोड़ा था जिस शहर में आके वक़्त का अब वो शहर भी मुझसे छूट रहा है मुझको बिदा करने आए हैं इस नगरी के सारे बासी वो सारे दिन जिनके कंधे पर सोती है अब भी तुम्हारी ज़ुल्फ़ की ख़ुशबू सारे लम्हे जिनके माथे पर हैं रौशन अब भी तुम्हारे लम्स 1 का टीका नम आँखों से गुमसुम मुझको देख रहे हैं मुझ को इन के दुख का पता है इन को मेरे ग़म की ख़बर है लेकिन मुझ को हुक्मे सफ़र है जाना होगा
Tarkash (Hindi)
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