इन्हीं सब इमारतों के मिले–जुले रूप को छंगामल विद्यालय इंटरमीजिएट कॉलिज, शिवपालगंज कहा जाता था। यहाँ से इंटरमीजिएट पास करनेवाले लड़के सिर्फ़ इमारत के आधार पर कह सकते थे कि हम शांतिनिकेतन से भी आगे हैं; हम असली भारतीय विद्यार्थी हैं; हम नहीं जानते कि बिजली क्या है, नल का पानी क्या है, पक्का फ़र्श किसको कहते हैं; सैनिटरी फिटिंग किस चिड़िया का नाम है। हमने विलायती तालीम तक देसी परम्परा में पायी है और इसीलिए हमें देखो, हम आज भी उतने ही प्राकृत हैं ! हमारे इतना पढ़ लेने पर भी हमारा पेशाब पेड़ के तने पर ही उतरता है, बन्द कमरे में ऊपर चढ़ जाता है।