इसके बाद वैद्यजी ने देश की दुर्दशा पर एक व्याख्यान दे डाला था। व्याख्यान दे चुकने के बाद वे एकदम से शान्त नहीं हुए, थोड़ी देर भुनभुनाते रहे। अफ़सर भी, विनम्रता के बावजूद, भुनभुनाता रहा। फिर दूसरे लोग भी भुनभुनाने लगे। सनीचर का जलसा पहले ही खत्म हो चुका था, इसलिए इस भुनभुनाहट ने उसकी सफलता पर कोई असर नहीं डाला, पर अन्त में बोलबाला भुनभुनाहट का ही रहा।