सन्नाटा छा गया। चपरासी धीरे–से छप्पर के दूसरे कोने की ओर बिल्ली–जैसी छलाँग लगाकर छिप गया। सरपंचजी हक्का–बक्का हो गए। कुसहर ने सन्तोष की साँस ली। माला जपनेवाले पंच ने आँख मूँदकर कहा, ‘‘प्रभो !’’ छोटू वैसे ही दहाड़ते रहे, ‘‘ए प्रभो ! तुम्हारी माला–वाला तुम्हारे मुँह में खोंसकर पेट से निकालूँगा। यह प्रभो–प्रभोवाली फ़ंटूशी पिल्ल से निकल पड़ेगी। तुम भी हमारे बाप को गाली दे रहे थे ?’’