इस बीमारी में मरीज़ मानसिक तनाव और निराशावाद के हल्ले में लम्बे–लम्बे वक्तव्य देता है, ज़ोर–ज़ोर से बहस करता है, बुद्धिजीवी होने के कारण अपने को बीमार और बीमार होने के कारण अपने को बुद्धिजीवी साबित करता है और अन्त में इस बीमारी का अन्त कॉफ़ी-हाउस की बहसों में, शराब की बोतलों में, आवारा औरतों की बाँहों में, सरकारी नौकरी में और कभी–कभी आत्महत्या में होता है।