राग दरबारी
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Read between December 28, 2019 - February 6, 2020
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पिछली पीढ़ी के मन में अगली पीढ़ी को मूर्ख और अगली के मन में पिछली को जोकर समझने का चलन वहाँ इतना बढ़ गया था कि अगर क्षेत्र साहित्य या कला का न होता, तो अब तक गृहयुद्ध हो चुका होता।
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आज़ादी मिलने के बाद हमने अपनी बहुत–सी सांस्कृतिक परम्पराओं को फिर से खोदकर निकाला है। तभी हम हवाई जहाज़ से यूरोप जाते हैं, पर यात्रा का प्रोग्राम ज्योतिषी से बनवाते हैं; फॉरेन ऐक्सचेंज और इनकमटैक्स की दिक्क़तें दूर करने के लिए बाबाओं का आशीर्वाद लेते हैं, स्कॉच व्हिस्की पीकर भगन्दर पालते हैं और इलाज के लिए योगाश्रमों में जाकर साँस फुलाते हैं, पेट सिकोड़ते
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सच्चाई छुप नहीं सकती बनावट के उसूलों से, कि खुशबू आ नहीं सकती कभी कागज के फूलों से।
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भंग पीनेवालों में भंग पीसना एक कला है, कविता है, कार्रवाई है, करतब है, रस्म है। वैसे टके की पत्ती को चबाकर ऊपर से पानी पी लिया जाए तो अच्छा–खासा नशा आ जाएगा, पर यह नशेबाजी सस्ती है। आदर्श यह है कि पत्ती के साथ बादाम, पिस्ता, गुलकन्द, दूध–मलाई आदि का प्रयोग किया जाए। भंग को इतना पीसा जाए कि लोढ़ा और सिल चिपककर एक हो जाएँ, पीने के पहले शंकर भगवान् की तारीफ़ में छन्द सुनाये जाएँ और पूरी कार्रवाई को व्यक्तिगत न बनाकर उसे सामूहिक रूप दिया जाए।
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नज़दीक के गाँवों में जो प्रेम–सम्बन्ध आत्मा के स्तर पर क़ायम होते हैं उनकी व्याख्या इस जंगल में शरीर के स्तर पर होती है। शहर से भी यहाँ कभी पिकनिक करनेवालों के जोड़े घूमने के लिए आते हैं और एक–दूसरे को अपना क्रियात्मक ज्ञान दिखाकर और कभी–कभी लगे–हाथ मन्दिर में दर्शन करके, सिकुड़ता हुआ तन और फूलता हुआ मन लेकर वापस चले जाते हैं।
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रंगनाथ को तब तक पता चल चुका था कि हैटवाले आदमी का नाम ‘सिंह साहब’ है। वे इस हलक़े के सैनिटरी इन्स्पेक्टर हैं। यह भी मालूम हुआ कि उनकी साइकिल पकड़कर खड़ा होनेवाला आदमी ज़िलाबोर्ड का मेम्बर है और हैट पकड़कर खड़ा होनेवाला आदमी उसी बोर्ड का टैक्स–कलेक्टर है।
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सच्ची बात और गदहे की लात को झेलनेवाले बहुत कम मिलते हैं।
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प्रजातन्त्र के बारे में उसने यहाँ एक नयी बात सुनी थी, जिसका अर्थ यह था कि चूँकि चुनाव लड़नेवाले प्राय: घटिया आदमी होते हैं, इसलिए एक नये घटिया आदमी द्वारा पुराने घटिया आदमी को, जिसके घटियापन को लोगों ने पहले से ही समझ–बूझ लिया है, उखाड़ना न चाहिए।
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हाईकोर्ट, सुप्रीम कोर्ट की शौकीनी सबके बूते की बात है ? एक–एक वकील करने में सौ–सौ रण्डी पालने का ख़र्च है।
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इस बीमारी में मरीज़ मानसिक तनाव और निराशावाद के हल्ले में लम्बे–लम्बे वक्तव्य देता है, ज़ोर–ज़ोर से बहस करता है, बुद्धिजीवी होने के कारण अपने को बीमार और बीमार होने के कारण अपने को बुद्धिजीवी साबित करता है और अन्त में इस बीमारी का अन्त कॉफ़ी-हाउस की बहसों में, शराब की बोतलों में, आवारा औरतों की बाँहों में, सरकारी नौकरी में और कभी–कभी आत्महत्या में होता है।
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तात्पर्य यह कि इस समय सनीचर को देखकर यह साबित हो जाता था कि अगर हम खुश रहें तो गरीबी हमें दुखी नहीं कर सकती और ग़रीबी को मिटाने की असली योजना यही है कि हम बराबर खुश रहें।
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उनसे कुछ दूर आगे बहुत–सी प्रौढ़ और तजुर्बेकार महिलाएँ भी उसी मतलब से सड़क के दोनों ओर क़तार बाँधकर बैठी थीं। वहाँ पर उनकी बेशर्म मौजूदगी नव–भारत के निर्माताओं पर लानत भेज रही थी। पर इसका पता उन निर्माताओं को निश्चय ही नहीं था, क्योंकि वे शायद उस वक़्त अपने घर के सबसे छोटे, पर लकदक कमरे में कमोड पर बैठे अख़बार, क़ब्ज़ियत और विदेश–गमन की समस्याओं पर विचार कर रहे थे।
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बेवकूफ़ लोग बेवकूफ़ बनाने के लिए बेवकूफों की मदद से बेवकूफों के ख़िलाफ़ बेवकूफ़ी करते हैं।
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चरवाहों में सिर्फ़ दो–तीन सीनियर लोग थे, बाक़ी कच्ची उमर के लड़के थे जिन्हें सार्वजनिक सभाओं में देश के होनेवाले गाँधी और नेहरू, टैगोर और सी.वी. रमन बताया जाता है।
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रंगनाथ समझ गया कि यह मुस्कराहट रो न पाने की मजबूरी से पैदा हुई है।