वहाँ लकड़ी की एक टूटी–फूटी चौकी पड़ी थी। उसकी ओर उँगली उठाकर गयादीन ने कहा, नैतिकता, समझ लो कि यही चौकी है। एक कोने में पड़ी है। सभा–सोसायटी के वक़्त इस पर चादर बिछा दी जाती है। तब बड़ी बढ़िया दिखती है। इस पर चढ़कर लेक्चर फटकार दिया जाता है। यह उसी के लिए है।’’

