राग दरबारी
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Read between August 19 - November 13, 2020
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पुनर्जन्म के सिद्धान्त की ईजाद दीवानी की अदालतों में हुई है, ताकि वादी और प्रतिवादी इस अफसोस को लेकर न मरें कि उनका मुकदमा अधूरा ही पड़ा रहा। इसके सहारे वे सोचते हुए चैन से मर सकते हैं कि मुक़दमे का फैसला सुनने के लिए अभी अगला जन्म तो पड़ा ही है।
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इस देश में लड़कियाँ ब्याहना भी चोरी करने का बहाना हो गया है। एक रिश्वत लेता है तो दूसरा कहता है कि क्या करे बेचारा ! बड़ा खानदान है, लड़कियाँ ब्याहनी हैं। सारी बदमाशी का तोड़ लड़कियों के ब्याह पर होता है।
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प्रिंसिपल साहब तकिये के सहारे निश्चल बैठे रहे। आख़िर में एक ऐसी बात बोले जिसे सब जानते हैं। उन्होंने कहा, ‘‘लोग आजकल बड़े बेईमान हो गए हैं।’’ यह बात बड़ी ही गुणकारी है और हर भला आदमी इसका प्रयोग मल्टी–विटामिन टिकियों की तरह दिन में तीन बार खाना खाने के बाद कर सकता है।
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यह हमारी गौरवपूर्ण परम्परा है कि असल बात दो–चार घण्टे की बातचीत के बाद अन्त में ही निकलती है।
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पुरानी पीढ़ी का यह विश्वास था कि हम बुद्धिमान हैं और हमारे बुद्धिमान हो चुकने के बाद दुनिया से बुद्धि नाम का तत्त्व ख़त्म हो गया है और नयी पीढ़ी के लिए उसका एक कतरा भी नहीं बचा है।
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सभी अपीलें प्राय: अंग्रेज़ी में लिखी गई थीं। इसीलिए प्राय: सभी लोगों ने इनको कविता के रूप में नहीं, चित्रकला के रूप में स्वीकार किया था
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वैद्यजी कुछ देर पूर्ववत् चुप बैठे हुए दूसरों की बातें सुनते रहे। यह आदत उन्होंने तभी से डाल ली थी जब से उन्हें विश्वास हो गया था कि जो खुद कम खाता है, दूसरों को ज़्यादा खिलाता है; खुद कम बोलता है, दूसरों को ज़्यादा बोलने देता है; वही खुद कम बेवकूफ़ बनता है, दूसरे को ज़्यादा बेवकूफ़ बनाता है।
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Samar
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Samar
ये वाली लाईन मेरे से छुट गयी थी।।। 😆😆 अभी रिविजन हो रहा है सर।
Anuj Sharma
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Anuj Sharma
😄😄
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यह फिलासफी लगभग सभी महत्त्वपूर्ण काव्यों और कथाओं में होती है और इसीलिए ठीक नहीं कि इस उपन्यास के पाठक भी काफ़ी देर से फिलासफी के एक लटके का इन्तज़ार कर रहे हों और सोच रहे हों, हिन्दी का यह उपन्यासकार इतनी देर से और सब तो कह रहा है, फिलासफी क्यों नहीं कहता ? क्या मामला है ? यह फ्रॉड तो नहीं है ? यह सही है कि ‘सत्य’ ‘अस्तित्व’ आदि शब्दों के आते ही हमारा कथाकार चिल्ला उठता है, ‘‘सुनो भाइयो, यह क़िस्सा-कहानी रोककर मैं थोड़ी देर के लिए तुमको फिलासफी पढ़ाता हूँ, ताकि तुम्हें यक़ीन हो जाय कि वास्तव में मैं फिलासफर था, पर बचपन के कुसंग के कारण यह उपन्यास (या कविता) लिख रहा हूँ। इसलिए हे भाइयो, लो, यह ...more
Anuj Sharma
This is one of the best meta commentary I’ve ever read. Matlab 4th wall toh kya, poora ka poora ghar hi breakdown kar diya hai. Vaah Shukla Ji Vaah!!! 🙏🏽👌🏽
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गुटबन्दी परात्मानुभूति की चरम दशा का एक नाम है। उसमें प्रत्येक ‘तू’, ‘मैं’ को और प्रत्येक ‘मैं’, ‘तू’–को अपने से ज़्यादा अच्छी स्थिति में देखता है। वह उस स्थिति को पकड़ना चाहता है। ‘मैं’ ‘तू’ और ‘तू’ ‘मैं’ को मिटाकर ‘मैं’ की जगह ‘तू’ और ‘तू’ की जगह ‘मैं’ बन जाना चाहता है।
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विलायती तालीम में पाया हुआ जनतन्त्र स्वीकार करते हैं और उसको चलाने के लिए अपनी परम्परागत गुटबन्दी का सहारा लेते हैं।
Anuj Sharma
Too good!
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तर्क और आस्था की लड़ाई हो रही थी और कहने की ज़रूरत नहीं कि आस्था तर्क को दबाये दे रही थी।
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चमार एक जाति का नाम है जिसे अछूत माना जाता है। अछूत एक प्रकार के दुपाये का नाम है जिसे लोग संविधान लागू होने से पहले छूते नहीं थे। संविधान एक कविता का नाम है जिसके अनुच्छेद 17 में छुआछूत खत्म कर दी गई है क्योंकि इस देश में लोग कविता के सहारे नहीं, बल्कि धर्म के सहारे रहते हैं और क्योंकि छुआछूत इस देश का एक धर्म है, इसलिए शिवपालगंज में भी दूसरे गाँवों की तरह अछूतों के अलग–अलग मुहल्ले थे
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संविधान लागू होने के बाद चमरही और शिवपालगंज के बाक़ी हिस्से के बीच एक अच्छा काम हुआ था। वहाँ एक चबूतरा बनवा दिया गया था, जिसे गाँधी–चबूतरा कहते थे। गाँधी, जैसा कि कुछ लोगों को आज भी याद होगा, भारतवर्ष में ही पैदा हुए थे और उनके अस्थि–कलश के साथ ही उनके सिद्धान्तों को संगम में बहा देने के बाद यह तय किया गया था कि गाँधी की याद में अब सिर्फ़ पक्की इमारतें बनायी जाएँगी और उसी हल्ले में शिवपालगंज में यह चबूतरा बन गया था।
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प्रजातन्त्र के बारे में उसने यहाँ एक नयी बात सुनी थी, जिसका अर्थ यह था कि चूँकि चुनाव लड़नेवाले प्राय: घटिया आदमी होते हैं, इसलिए एक नये घटिया आदमी द्वारा पुराने घटिया आदमी को, जिसके घटियापन को लोगों ने पहले से ही समझ–बूझ लिया है, उखाड़ना न चाहिए।
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हर साल गाँव में वन–महोत्सव का जलसा होता था, जिसका अर्थ जंगल में पिकनिक करना नहीं बल्कि बंजर में पेड़ लगाना है
Anuj Sharma
Reminds me of all Gandhidham NGOs rushing to Tappar during July & August!
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dunkdaft
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dunkdaft
Ahaha... And still wahaan banjar hai
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अगर हम खुश रहें तो गरीबी हमें दुखी नहीं कर सकती और ग़रीबी को मिटाने की असली योजना यही है कि हम बराबर खुश रहें।
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एक पुराने श्लोक में भूगोल की एक बात समझाई गई है कि सूर्य दिशा के अधीन होकर नहीं उगता। वह जिधर ही उदित होता है, वही पूर्व दिशा हो जाती है। उसी तरह उत्तम कोटि का सरकारी आदमी कार्य के अधीन दौरा नहीं करता, वह जिधर निकल जाता है, उधर ही उसका दौरा हो जाता है।
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आज़ादी के मिलने के बाद इस देश में साइकिल–रिक्शा–चालकों का वर्ग जिस तेज़ी से पनपा है, उससे यही साबित होता है कि हमारी आर्थिक नीतियाँ बहुत बढ़िया हैं और यहाँ के घोड़े बहुत घटिया हैं। उससे यह भी साबित होता है कि समाजवादी समाज की स्थापना के सिलसिले में हमने पहले तो घोड़े और मनुष्य के बीच भेदभाव को मिटाया है और अब मनुष्य और मनुष्य के बीच भेदभाव को मिटाने की सोचेंगे।
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होशियार कौआ कूड़े पर ही चोंच मारता है।
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यदि तुम्हारे हाथ में शक्ति है तो उसका उपयोग प्रत्यक्ष रूप से उस शक्ति को बढ़ाने के लिए न करो। उसके द्वारा कुछ नई और विरोधी शक्तियाँ पैदा करो और उन्हें इतनी मज़बूती दे दो कि वे आपस में एक–दूसरे से संघर्ष करती रहें। इस प्रकार तुम्हारी शक्ति सुरक्षित और सर्वोपरि रहेगी। यदि तुम केवल अपनी शक्ति के विकास की ही चेष्टा करते रहे और दूसरी परस्पर–विरोधी शक्तियों की सृष्टि, स्थिति और संहार के नियन्त्रक नहीं बने तो कुछ दिनों बाद कुछ शक्तियाँ किसी अज्ञात अप्रत्याशित कोण से उभरकर तुम पर हमला करेंगी और तुम्हारी शक्ति को छिन्न–भिन्न कर देंगी।
Anuj Sharma
Power Tactics & Politics explained in a very lucid and straightforward manner!
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योग्य आदमियों की कमी है। इसलिए योग्य आदमी को किसी चीज़ की कमी नहीं रहती।
Anuj Sharma
HR 101
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भैंस ने इस बार खूँटे से कुछ दूर आकर एक ऐसा राक–एन–रोल दिखाया कि लगा अब भैंस की जगह यहाँ एल्विस प्रिस्ले को बुलाना पड़ेगा।
Anuj Sharma
Never thought that Elvis Presley would make an appearance in Raag Darbari !!!
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तभी तो कहा कि शहर में हर दिक्कत के आगे एक राह है और देहात में हर राह के आगे एक दिक्कत है।’’
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‘‘करोगे क्या ? चुपचाप मार खा लो। मास्टर होकर मार खाने से कहाँ तक डरोगे ?’’
Anuj Sharma
It's weird but being a teacher in India, this thought often crosses the mind!
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जिन दिनों भारतवर्ष में गोरों की हुकूमत थी (बशर्ते की आगे लिखा जानेवाला इतिहास हमें ऐसा मानने की इजाज़त दे),