अदालत के एक पंच उन राजनीतिज्ञों की तरह थे जो यू. एन. ओ. में समस्या से हटकर सिद्धान्त की बात करते हैं और इस तरह वे किसी का विरोध नहीं करते और बदले में कोई उनका विरोध नहीं करता। ‘जनता शान्ति चाहती है’, ‘हमारी सभ्यता की नींव विश्वबन्धुत्व और प्रेम पर पड़नी चाहिए’ आदि–आदि किताबी बातें सुनकर कमीना–से–कमीना देश भी सिर हिलाकर ‘हाँ’ करने से बाज़ नहीं आता और उस राजनीतिज्ञ का यह भ्रम और भी फूल जाता है कि उसने कितनी सच्ची बात कही है।