Rahul Mahawar

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देसी विश्वविद्यालयों के लड़के अंग्रेज़ी फिल्म देखने जाते हैं। अंग्रेज़ी बातचीत समझ में नहीं आती, फिर भी बेचारे मुस्कराकर दिखाते रहते हैं कि वे सब समझ रहे हैं और फ़िल्म बड़ा मज़ेदार है। नासमझी के माहौल में रंगनाथ भी उसी तरह मुस्कराता रहा। पहलवान कहता रहा, ‘‘गुरू, इस रामसरूप सुपरवाइज़र की नक्शेबाज़ी मैं पहले से देख रहा था। बद्री पहलवान से मैंने तभी कह दिया था कि वस्ताद, यह लखनऊ लासेबाजी की फिराक में जाता है। तब तो बद्री वस्ताद भी कहते रहे कि ‘टाँय–टाँय न कर छोटू, साला आग खायेगा तो अंगार हगेगा।’ अब वह आग भी खा गया और गेहूँ भी तिड़ी कर ले गया। पहले तो बैद महाराज भी छिपाए बैठे रहे, अब जब पानी का हगा ...more
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राग दरबारी
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