Rahul Mahawar

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इस हरे–भरे इलाके में एक मकान ने मैदान की एक पूरी–की–पूरी दिशा को कुछ इस तरह घेर लिया था कि उधर से आगे जाना मुश्किल था। मकान वैद्यजी का था। उसका अगला हिस्सा पक्का और देहाती हिसाब से काफ़ी रोबदार था, पीछे की तरफ़ दीवारें कच्ची थीं और उसके पीछे, शुबहा होता था, घूरे पड़े होंगे। झिलमिलाते हवाई अड्डों और लकलकाते होटलों की मार्फत जैसा ‘सिम्बालिक माडर्नाइज़ेशन’ इस देश में हो रहा है, उसका असर इस मकान की वास्तुकला में भी उतर आया था और उससे साबित होता था कि दिल्ली से लेकर शिवपालगंज तक काम करनेवाली देसी बुद्धि सब जगह एक–सी है। मकान का अगला हिस्सा, जिसमें चबूतरा, बरामदा और एक बड़ा कमरा था, बैठक के नाम से ...more
राग दरबारी
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